Inkhabar Haryana, Agriculture News: हरियाणा के बराड़ा जिले के होली गांव के किसान अब पारंपरिक खेती से बाहर निकलकर मशरूम उत्पादन में अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं। इस बदलाव ने न केवल उनकी आमदनी में वृद्धि की है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनने का एक नया रास्ता भी दिखाया है। मशरूम उत्पादन ने यहां के किसानों के लिए कम समय में अधिक मुनाफा कमाने का अवसर प्रस्तुत किया है और यह क्षेत्र में एक नया कृषि व्यवसाय बनकर उभरा है।
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गांव की निवासी रीटा ने कृषि विज्ञान केंद्र, अंबाला से मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग लेकर इस व्यवसाय में कदम रखा। उन्होंने शुरुआत में केवल 100 बैग्स से काम शुरू किया था, लेकिन जल्द ही उन्हें इसके अच्छे परिणाम देखने को मिलने लगे। रीटा का कहना है कि मशरूम की खेती पारंपरिक फसलों के मुकाबले बहुत लाभकारी है। यह कम समय में ज्यादा मुनाफा देता है और इसे घर पर भी आसानी से किया जा सकता है। अब वो1,000 बैग्स के साथ बड़े पैमाने पर मशरूम उत्पादन कर रही हैं।
उनकी सफलता ने उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया और वे इसे एक स्थिर व्यवसाय के रूप में देख रही हैं। उनके पति को भी हिसार यूनिवर्सिटी द्वारा ‘प्रसिद्ध कुशल किसान’ का पुरस्कार मिल चुका है, जो इस परिवार की कड़ी मेहनत और समर्पण को दर्शाता है। मशरूम उत्पादन को लेकर सरकार की योजनाएं और सब्सिडी भी इस व्यवसाय को और अधिक आकर्षक बनाती हैं।
होली गांव के एक और युवा किसान, निखिल ने भी इस व्यवसाय में रुचि दिखाई है। उन्होंने बताया कि हमारे परिवार ने पिछले तीन सालों से मशरूम उत्पादन शुरू किया है, और अब इसकी आमदनी कॉरपोरेट नौकरियों से भी ज्यादा है। निखिल का मानना है कि मशरूम को ‘खेती का डायमंड’ कहा जा सकता है, क्योंकि इसके फायदे केवल आर्थिक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी भी हैं।
रीटा की बेटी आयुषी ने अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद इस व्यवसाय में सक्रिय रूप से भाग लिया है। आयुषी का कहना है कि मशरूम में भरपूर पोषण होता है और यह कई बीमारियों से बचाव करता है। यह एक ऐसा व्यवसाय है जो कम समय में अच्छी आमदनी और उच्च पोषण प्रदान करता है।” आयुषी के विचारों ने इस व्यवसाय को और भी मजबूत किया है।
यह कहानी केवल होली गांव तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य किसान भी इसे एक नए अवसर के रूप में देख रहे हैं। मशरूम उत्पादन ने पारंपरिक खेती के साथ-साथ एक वैकल्पिक और लाभकारी व्यवसाय का रूप लिया है। सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी और योजनाओं के चलते किसानों के लिए यह व्यवसाय और भी सुलभ हो गया है।
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