इन आंकड़ों से साफ है कि भले ही सरकारी स्कूलों की संख्या अधिक हो, लेकिन अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों के बजाय निजी स्कूलों में भेजना पसंद कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में कमी और बुनियादी सुविधाओं की कमी है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर ध्यान देती, तो आज बच्चे निजी स्कूलों का रुख न करते।
उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस योजना पर खर्च होने वाली राशि को सरकारी स्कूलों के विकास में लगाती, तो शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर होती और बच्चों को निजी स्कूलों पर निर्भर नहीं होना पड़ता। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार एक सुनियोजित साजिश के तहत सरकारी स्कूलों को कमजोर कर रही है, ताकि पूरी शिक्षा व्यवस्था निजी स्कूलों और कॉलेजों के हवाले हो जाए। यदि ऐसा हुआ, तो निजी स्कूलों की मनमानी बढ़ेगी, और शिक्षा के नाम पर तरह-तरह के शुल्क वसूले जाएंगे, जिससे गरीब बच्चों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना और भी मुश्किल हो जाएगा।
कुमारी सैलजा ने सरकार को सुझाव दिया कि वह सरकारी स्कूलों के प्रति जनता का विश्वास पुनः स्थापित करे। उन्होंने कहा कि सरकार को प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले स्कूलों की बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देने की जरूरत है।
उन्होंने मांग की कि सरकार को सरकारी स्कूलों में भवनों के निर्माण और मरम्मत, चारदीवारी, स्वच्छ पेयजल और शौचालयों की व्यवस्था, अच्छे शिक्षकों की भर्ती, स्मार्ट क्लासरूम और डिजिटल लर्निंग सुविधाओं जैसी मूलभूत आवश्यकताओं पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि सरकार वास्तव में बच्चों के भविष्य को लेकर गंभीर है, तो उसे सरकारी स्कूलों की व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि सभी वर्गों के बच्चे बिना किसी भेदभाव के अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें।