याचिकाकर्ता अनिल यादव हिसार के शिक्षा विभाग में लेक्चरर ने हाईकोर्ट में शिकायत की थी कि उनका 2005 में एसएस मास्टर से लेक्चरर पद पर प्रमोशन होना चाहिए था। लेकिन विभाग के अधिकारियों ने जानबूझकर उनके प्रमोशन और उससे जुड़े लाभ रोक दिए। इस कारण अनिल यादव को 11 साल बाद, 2016 में प्रमोशन मिला।
अनिल यादव ने इस अन्याय के खिलाफ 2007 में कानूनी लड़ाई शुरू की थी और 16 साल तक न्याय के लिए संघर्ष किया। हाईकोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए पाया कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने अपनी जिम्मेदारी का सही तरीके से निर्वहन नहीं किया और शिकायतकर्ता को लंबे समय तक परेशान किया।
हाईकोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए हिसार, यमुनानगर और कुरुक्षेत्र जिलों के जिला शिक्षा अधिकारियों (DEO) और शिक्षा विभाग के दो निदेशकों की सैलरी रोकने का आदेश दिया। जिन अधिकारियों पर यह कार्रवाई की गई है, वे हैं:
कोर्ट ने इन अधिकारियों की सैलरी आगामी आदेश तक रोकने के निर्देश दिए हैं। यह फैसला 29 नवंबर को सुनाया गया था, लेकिन इसका आदेश 2 दिसंबर को अपलोड हुआ।
कोर्ट ने कहा कि इन अधिकारियों ने जान बूझकर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और शिकायतकर्ता को उसका हक दिलाने में बाधा उत्पन्न की। अधिकारियों के इस रवैये ने न केवल कर्मचारी के कैरियर को प्रभावित किया, बल्कि प्रशासनिक नैतिकता पर भी सवाल खड़े किए।
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