‘छावा’ का बजट लगभग 150 करोड़ रुपये बताया जा रहा है, जो इसे एक बड़े पैमाने पर बनाई गई फिल्म बनाता है। इस फिल्म को लेकर दर्शकों में जबरदस्त उत्साह था, जिसका असर इसकी एडवांस टिकट बुकिंग पर भी दिखा। रिलीज से पहले ही ‘छावा’ ने 738K टिकटों की बिक्री कर ‘टाइगर 3’, ‘गुंटूर करम’ और ‘डंकी’ जैसी बड़ी फिल्मों को पीछे छोड़ दिया।
फिल्म के पहले दिन की कमाई पर सबकी नजरें टिकी थीं और शुरुआती रिपोर्ट्स के मुताबिक, ‘छावा’ ने 20-25 करोड़ रुपये के बीच की शानदार ओपनिंग की है। इसके साथ ही यह विक्की कौशल की सबसे बड़ी ओपनिंग फिल्मों में शामिल हो गई है।
फिल्म की शुरुआत अजय देवगन की दमदार आवाज़ से होती है, जो कहानी को एक भव्य और ऐतिहासिक अहसास दिलाती है। ‘छावा’ की कहानी छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद की घटनाओं पर केंद्रित है। शिवाजी की मृत्यु के बाद, मुगल बादशाह औरंगजेब (अक्षय खन्ना) का एक ही मकसद है – संभाजी महाराज को पकड़कर खत्म करना। लेकिन संभाजी (विक्की कौशल) अपने युद्ध कौशल और रणनीतियों से औरंगजेब के मंसूबों पर पानी फेरते रहते हैं।
हालांकि फिल्म की भव्यता और सेट डिज़ाइन काबिल-ए-तारीफ हैं, लेकिन इसकी कहानी कई मौकों पर कमजोर पड़ती दिखती है। कुछ दृश्य पहले भी बॉलीवुड फिल्मों में देखे गए लगते हैं, जिससे फिल्म की नयापन थोड़ा कम हो जाता है।
विक्की कौशल (संभाजी महाराज)
विक्की कौशल ने इस फिल्म के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी मेहनत की है। उनके एक्शन सीन प्रभावशाली हैं और उनका लुक भी दमदार लगता है। लेकिन जब बात आती है डायलॉग डिलीवरी और इमोशन्स की, तो वे कई जगहों पर कमजोर नजर आते हैं। उनकी ऊर्जा और जोश साफ नजर आता है, लेकिन उनकी परफॉर्मेंस को देखकर कहीं न कहीं बॉलीवुड के एक दिग्गज अभिनेता की याद आ जाती है, जिन्होंने पहले मराठा योद्धा का किरदार निभाकर दर्शकों के दिलों पर राज किया था।
फिल्म में सबसे ज्यादा प्रभावशाली अगर कोई परफॉर्मेंस है, तो वह अक्षय खन्ना की है। उन्होंने औरंगजेब के किरदार में जबरदस्त संयम और शातिर दिमाग का प्रदर्शन किया है। जहां विक्की कौशल कई बार ओवरएक्टिंग की कगार पर नजर आते हैं, वहीं अक्षय खन्ना का ठंडा और शातिर अंदाज उन्हें और भी खतरनाक बना देता है।
रश्मिका मंदाना को महारानी येसुबाई के रूप में स्क्रीन पर ज्यादा समय नहीं मिला है, और उनके किरदार में उतनी गहराई नहीं दिखाई गई है, जितनी होनी चाहिए थी। उनका अभिनय ठीक-ठाक है, लेकिन उनकी मौजूदगी फिल्म के प्रभाव में कोई बड़ा बदलाव नहीं लाती।
‘छावा’ में ऐतिहासिक भव्यता, शानदार एक्शन सीक्वेंस और अच्छी सिनेमेटोग्राफी देखने को मिलती है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी भावनात्मक जुड़ाव की है। फिल्म में इतिहास को एक भव्य तरीके से पेश करने की कोशिश की गई है, लेकिन इसमें कई जगहों पर कनेक्टिविटी की कमी नजर आती है। अगर आप ऐतिहासिक ड्रामा और भव्य युद्ध सीन्स के शौकीन हैं, तो यह फिल्म आपको जरूर पसंद आएगी। लेकिन अगर आप एक इमोशनल और गहराई वाली कहानी की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म कुछ हद तक निराश कर सकती है।