इस बार भाजपा ने सोनीपत और अंबाला में भी मेयर की सीट अपने नाम कर ली, जहां पिछली बार क्रमशः कांग्रेस और हरियाणा जनचेतना पार्टी का कब्जा था। वहीं, मानेसर में निर्दलीय उम्मीदवार डॉ. इंद्रजीत यादव ने जीत दर्ज की। दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए यह चुनाव बेहद निराशाजनक रहा, क्योंकि पार्टी न केवल किसी भी नगर निगम में जीत दर्ज करने में असफल रही, बल्कि अपनी पुरानी सीट सोनीपत भी गंवा बैठी।
2. सशक्त चुनावी प्रबंधन- भाजपा ने नगर निगम चुनाव को हल्के में नहीं लिया और इसे लोकसभा व विधानसभा चुनावों की तरह ही लड़ा। पार्टी ने बूथ स्तर पर पांच स्तर का संगठनात्मक मैनेजमेंट तैयार किया। इसके तहत हर घर तक पार्टी का संदेश कम से कम चार बार पहुंचाया गया। वार्ड स्तर पर विशेष टीमें बनाई गईं, जो मतदाताओं से सीधा संवाद कर भाजपा की नीतियों को समझाने का काम करती रहीं। इस सशक्त प्रबंधन ने भाजपा को बढ़त दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
3. बड़े नेताओं की सक्रिय भागीदारी- भाजपा ने इस चुनाव को गंभीरता से लिया और प्रचार अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री नायब सैनी सहित तमाम वरिष्ठ नेताओं को प्रचार में उतारा गया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मोहन बड़ौली, मंत्रियों और विधायकों ने भी सक्रिय रूप से चुनाव प्रचार किया। जहां स्थानीय नेताओं ने संगठन से किसी विशेष नेता को बुलाने की मांग की, वहां पार्टी ने तुरंत व्यवस्था की। इससे जनता में यह संदेश गया कि भाजपा शहरों के विकास को लेकर गंभीर है और सरकार के उच्च स्तर पर भी इसे प्राथमिकता दी जा रही है।
4. बागियों से दूरी बनाए रखना- भाजपा ने इस बार विधानसभा चुनाव में बगावत करने वालों को पार्टी में दोबारा शामिल नहीं किया। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने स्पष्ट कर दिया था कि अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हिसार में भाजपा ने पूर्व मेयर गौतम सरदाना और वरिष्ठ नेता तरुण जैन को पार्टी में शामिल नहीं किया, भले ही चुनाव जीतने के लिए उनकी वापसी मददगार हो सकती थी। इस सख्त रवैये का असर यह हुआ कि पार्टी के भीतर किसी ने बगावत करने की हिम्मत नहीं की, जिससे एकजुटता बनी रही और कोई आंतरिक कलह नहीं हुआ।