कुमारी सैलजा ने अपने बयान में चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा की सांझी विरासत बताया। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ केवल एक शहर नहीं, बल्कि हरियाणा और पंजाब के खून-पसीने से सींचा गया एक सपना है। 1966 के पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत, चंडीगढ़ को 40:60 के अनुपात में हरियाणा और पंजाब के बीच बांटा गया था। लेकिन अब केंद्र सरकार इस साझा व्यवस्था को खत्म करने पर तुली हुई है।
मोदी सरकार की हालिया अधिसूचना के अनुसार, अब चंडीगढ़ में प्रशासनिक सलाहकार के स्थान पर चीफ सेक्रेटरी का पद होगा। इसके साथ ही, सचिव के तौर पर 11 अधिकारी कार्य करेंगे, जो अब यूटी कैडर के होंगे। यह निर्णय हरियाणा और पंजाब के अधिकारों को खत्म कर देता है। कुमारी सैलजा ने कहा कि अब चंडीगढ़ में वित्त, गृह, जिला उपायुक्त, निगम आयुक्त जैसे अहम पदों पर हरियाणा और पंजाब का कोई हक नहीं होगा।
सैलजा ने हरियाणा सरकार और मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिए प्रदेश के हितों को गिरवी रख रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार की चुप्पी यह दिखाती है कि वे चंडीगढ़ पर दावा छोड़ने को तैयार हैं। यह प्रदेश की जनता के साथ विश्वासघात है, जिसे हरियाणा के लोग किसी भी कीमत पर सहन नहीं करेंगे।
सैलजा ने केंद्र सरकार को याद दिलाया कि चंडीगढ़ को बसाने में हरियाणा की जमीन, संसाधन और मेहनत लगी है। इसलिए हरियाणा का हक कोई छीन नहीं सकता। उन्होंने चेतावनी दी कि हरियाणा की जनता इस अन्याय को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी।