Farmers Movement: हरियाणा और पंजाब में किसान आंदोलन का असर सियासी स्तर पर बैकफुट पर दिखाई दिया। हाल ही में हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने यह साबित किया कि आंदोलन का प्रभाव सीमित रहा। भाजपा ने हरियाणा में तीसरी बार बहुमत हासिल कर यह दिखा दिया कि किसान आंदोलन का धरातल पर बहुत खास असर नहीं हुआ। भाजपा ने 48 सीटें जीतकर सत्ता विरोधी लहर को पीछे छोड़ दिया और अपनी छवि को सुधार लिया।
पंजाब में भी लोकसभा चुनाव-2024 में ऐसा ही नजारा देखने को मिला। भाजपा ने पंजाब में भले ही एक भी सीट नहीं जीती, लेकिन 18.56 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो शिरोमणि अकाली दल से 5.14 प्रतिशत अधिक थे। यह प्रदर्शन किसान आंदोलन के बावजूद भाजपा के लिए एक सकारात्मक संकेत था। पंजाब और हरियाणा में कई किसान संगठनों ने केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोला, लेकिन इसका सियासी फायदा ज्यादा नहीं हुआ।
किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले गुरनाम सिंह चढूनी को भी हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, उन्हें केवल 1170 वोट मिले। इसने दिखाया कि चुनावों में किसान आंदोलन का व्यापक असर नहीं हो पाया।
हरियाणा और पंजाब के चुनाव नतीजों से साफ है कि किसान संगठनों को अब अपनी रणनीति में बदलाव करने की जरूरत है। शंभू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों को अपनी मांगों को लेकर नए तरीके तलाशने होंगे। राजनीतिक घमासान के बीच किसान आंदोलन की धार कमजोर पड़ गई, और इसने भविष्य की चुनौतियों को भी उजागर किया है।