Inkhabar Haryana, Jind Driver Chori: हरियाणा के जींद जिले के हाडवा गांव की रहने वाली निशु देशवाल आज पूरे क्षेत्र में “ड्राइवर छोरी” के नाम से मशहूर हैं। उनकी यह पहचान किसी संयोगवश नहीं बनी, बल्कि यह उनकी मेहनत, संघर्ष और जिम्मेदारी निभाने के जुनून का नतीजा है। पिता की बीमारी के बाद घर की आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए निशु ने पिकअप गाड़ी का स्टेयरिंग थामा और आज वह हरियाणा समेत अन्य राज्यों में भी अपनी गाड़ी की बुकिंग लेकर जाती हैं। उनकी कहानी न केवल साहस और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है, बल्कि हर उस लड़की के लिए प्रेरणा है जो समाज की बेड़ियों को तोड़कर अपने सपनों को साकार करना चाहती है।
जानकारी के मुताबिक, निशु देशवाल के पिता मुकेश कुमार की रीढ़ की हड्डी की नसें जाम हो गईं, जिससे वह ज्यादा देर तक बैठने में असमर्थ हो गए। ऐसे में परिवार की रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर थी और उनकी मां सुमनलता भी चार बार के ऑपरेशन के बाद काम करने में असमर्थ थीं। ऐसे कठिन समय में निशु ने घर की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर लिया और अपने पिता की पिकअप गाड़ी को चलाना शुरू किया।
शुरुआत में गांव के लोग लड़की को गाड़ी चलाते देखकर अजीब नजरों से देखते थे, लेकिन निशु ने अपनी मेहनत और ईमानदारी से लोगों का नजरिया बदल दिया। पहले वह केवल आसपास के गांवों में जानवरों को ढोने के लिए गाड़ी ले जाती थीं, लेकिन अब वह हरियाणा के साथ-साथ दूसरे राज्यों में भी अपनी गाड़ी बुकिंग पर ले जाती हैं।
निशु की मां सुमनलता बताती हैं कि उनकी बेटी बचपन से ही मेहनती और निडर रही है। छठी कक्षा से ही उसने घर के कामों में रुचि लेना शुरू कर दिया था। खेतों में काम करना, भैंसों को चारा डालना, दूध निकालना, और यहां तक कि बेकाबू हुए पशुओं को काबू में करना – ये सब काम निशु बखूबी करती हैं। उनके भाई मनदीप बाहर नौकरी करते हैं, इसलिए घर और पिता की जिम्मेदारी पूरी तरह से निशु के कंधों पर आ गई। लेकिन उन्होंने इसे बोझ समझने के बजाय अपने आत्मनिर्भरता की राह बना लिया।
पिल्लूखेड़ा के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से स्नातक की डिग्री लेने के बाद निशु ने खुद का स्टार्टअप शुरू किया। हालांकि, उनका असली सपना हरियाणा रोडवेज में ड्राइवर की नौकरी करना है। उनके लिए गाड़ी चलाना सिर्फ एक जरूरत नहीं, बल्कि एक जुनून है। गांव के लोग, जो कभी एक लड़की को मर्दों जैसे काम करते देख निंदा करते थे, आज उसी निशु पर गर्व करते हैं। उनके साहस और संघर्ष की कहानी समाज में एक सकारात्मक संदेश देती है कि कोई भी काम लड़का-लड़की के भेदभाव से नहीं, बल्कि मेहनत और लगन से बड़ा होता है।