सैलजा ने यह भी कहा कि भाजपा सरकार ने किसानों को पोर्टल के खेल में उलझाकर रखा हुआ है। कृषि विभाग की हिदायतों के अनुसार, विभिन्न योजनाओं का लाभ लेने के लिए किसानों को “मेरी फसल मेरा ब्यौरा” पोर्टल पर अपनी फसल का पंजीकरण कराना अनिवार्य किया गया है। इस पोर्टल के माध्यम से सरकार के पास यह जानकारी होती है कि किस खेत में कौन सी फसल लगी है और कितने एकड़ में उसकी बुआई हुई है।
कुमारी सैलजा ने सवाल उठाया कि यदि सरकार के पास पहले से यह आंकड़े हैं, तो किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए क्यों कोई ठोस नीति नहीं बनाई जाती? । उन्होंने कहा कि सरकार को किसानों के अधिकारों के प्रति और अधिक संवेदनशील होना चाहिए, क्योंकि किसान देश के अन्नदाता हैं और उन्हें उनके हालात पर छोड़ना किसी भी हालत में उचित नहीं है।
कुमारी सैलजा ने हरियाणा में डीएपी खाद की कमी को लेकर भी गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि प्रदेश में लगभग 90 लाख एकड़ कृषि योग्य भूमि है, जिसमें से 62 लाख एकड़ में गेहूं की बुआई की जाती है। हालांकि, पिछले छह सालों में डीएपी खाद की खपत 90 हजार मीट्रिक टन तक पहुँच चुकी है। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, एक एकड़ में 50 किलोग्राम डीएपी खाद की आवश्यकता होती है, लेकिन किसानों को अभी भी खाद की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है।
कुमारी सैलजा ने कहा कि जब सरकार दावा करती है कि डीएपी की कोई कमी नहीं है और जल्द ही इसे उपलब्ध करा दिया जाएगा, तो वह यह नहीं समझ रही कि किसानों को खाद की आवश्यकता तत्काल होती है । उन्होंने विशेष रूप से उन क्षेत्रों का उल्लेख किया जहाँ किसानों को खाद की कमी के चलते समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जैसे रोहतक, करनाल, सिरसा, नारनौल, रेवाड़ी, सोनीपत, जींद, अंबाला, कैथल, यमुनानगर और पानीपत।
कुमारी सैलजा ने कहा कि सरकार को बिजाई के आधार पर खाद का प्रबंध पहले से करना चाहिए था, ताकि किसानों को संकट का सामना न करना पड़ता। उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए और सरकार की नीति में बदलाव की जरूरत पर जोर दिया।