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SurajKund Mela 2025: सूरजकुंड मेले में लगा अनोखा स्टोल, चाय पियो और कुल्हड़ खा जाओ, जानें क्या हैं इसकी खासियत

BY: • LAST UPDATED : February 21, 2025

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Inkhabar Haryana, SurajKund Mela 2025: अक्सर हम चाय पीने के बाद कप को कूड़े में फेंक देते हैं, लेकिन क्या हो अगर चाय पीने के बाद कप को भी खा लिया जाए? यह सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन फरीदाबाद के अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में एक ऐसी दुकान है जहां लोग चाय पीने के बाद अपने कप को खा रहे हैं। यह अनोखा स्टार्टअप ‘आटावेयर’ के नाम से जाना जाता है, जिसे पुनीत दत्ता ने शुरू किया है।

विदेश से नौकरी छोड़ आए थे भारत

पुनीत दत्ता पहले विदेश में एक अच्छी नौकरी कर रहे थे, लेकिन जब वे भारत आए और वृंदावन घूमने गए, तो उन्होंने यमुना नदी में तैरती थर्माकोल की प्लेटें देखीं। यह दृश्य उन्हें झकझोर गया। उसी दौरान उन्होंने एक साधु को देखा, जो हाथ में पूरियां रखकर सब्जी डलवा रहे थे और खाने के बाद अपने हाथों को साफ कर लिया। यहीं से उन्हें एक अनोखा विचार आया – ऐसा कप या प्लेट बनाई जाए जिसे खाने के बाद फेंकने की जरूरत न हो, बल्कि उसे खाया जा सके।

कैसे आया पुनीत को यें आइडिया

पुनीत ने इस आइडिया पर काम करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी और 2013 से रिसर्च में जुट गए। हालांकि, शुरू में कई कठिनाइयां आईं। उन्होंने देखा कि कई कंपनियाँ पहले से ही खाने योग्य कप और प्लेट बना रही थीं, लेकिन उनमें एक बड़ी समस्या थी – वे गर्म तरल को सहन नहीं कर पाते थे। एक दिलचस्प घटना ने उन्हें नए समाधान की ओर मोड़ा। उनके जर्मनी के कुछ दोस्त कुतुब मीनार देखने गए थे, जहां एक टूर गाइड ने मजाक में कहा कि कुतुब मीनार गुड़ से बनी हुई है। मजाक-मजाक में उनके दोस्त ने पत्थर का एक टुकड़ा उठाकर पुनीत को दिया और कहा कि इसे उनके सूप में डाल दिया जाए। इस वाकये से पुनीत के दिमाग में एक नया विचार आया – क्यों न गुड़ का उपयोग करके ऐसा प्रोडक्ट बनाया जाए जो मजबूत भी हो और खाने योग्य भी।

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इस सफर में उन्होंने कई त्याग किए – घर बिक गया, गहने बेचने पड़े, यहाँ तक कि पत्नी का मंगलसूत्र तक गिरवी रखना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और 2019 में अपने प्रयोग को सफल बना लिया। उन्होंने गुड़ में विभिन्न फ्लेवर्स मिलाकर खाने योग्य कप तैयार किए।

कैसे अलग है यह प्रोडक्ट?

पुनीत बताते हैं कि उनके प्रोडक्ट और अन्य खाने योग्य कप के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं:

  • रासायनिक मुक्त उत्पादन – अन्य उत्पाद बिस्कुट के फार्मूले पर बनते हैं, जिनमें तेल, पानी, केमिकल, प्रिजर्वेटिव्स और बेकिंग एजेंट होते हैं। लेकिन उनके कप केवल गुड़ और अनाज से बने होते हैं, जिनमें कोई आटा नहीं डाला जाता।
  • गर्म तरल को सहन करने की क्षमता – उनका प्रोडक्ट गर्म चाय या कॉफी को अच्छी तरह से सहन कर सकता है, जबकि अन्य उत्पाद जल्दी गल जाते हैं।
  •  2000 फ्लेवर्स में उपलब्ध – इनके कप में पान, इलायची, अदरक जैसे प्राकृतिक फ्लेवर भी मिलाए जाते हैं, जिससे स्वाद और भी बेहतर हो जाता है।
  • 100% बायोडिग्रेडेबल और इको-फ्रेंडली – यह पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है और किसी भी तरह का कचरा नहीं छोड़ता।

व्यापार में मिली सफलता

आज पुनीत के खाने योग्य कप की कीमत 25 से 30 रुपए के बीच है। उनका बिजनेस अब तेजी से आगे बढ़ रहा है और सरकार भी उनका समर्थन कर रही है। उन्होंने इस प्रोडक्ट के लिए मशीनरी का पेटेंट भी करा लिया है। अब वे अपने घर और बाकी खोई हुई चीजों को वापस पाने की उम्मीद कर रहे हैं।

इंडिया से शुरू हुआ एक बड़ा बदलाव

पुनीत ने इस प्रोडक्ट को भारत में ही बनाने का फैसला किया क्योंकि यहां गन्ना आसानी से उपलब्ध है, जबकि विदेशों में इसकी आपूर्ति कठिन है। भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए उन्होंने स्टार्टअप की शुरुआत यहीं से की। उनका उद्देश्य केवल व्यापार करना नहीं, बल्कि पर्यावरण को भी स्वच्छ रखना है। उनके इस अनोखे इनोवेशन से प्लास्टिक और थर्माकोल जैसे हानिकारक कचरे को कम करने में मदद मिल रही है।

 

 

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