मेले में जगह-जगह अलग-अलग वेशभूषा में बहरूपिया कलाकार दर्शकों को हैरान कर रहे हैं। कोई जंगली के रूप में घूम रहा है, तो कोई रीछ बनकर लोगों को डराने का प्रयास कर रहा है। लेकिन अलादीन के जिन का किरदार निभा रहे कलाकार ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
अलादीन के जिन का किरदार निभा रहे कलाकार ने हंसी-मजाक के अंदाज में कहा कि मैं दो सौ सालों से इस बोतल में बंद था, लेकिन सूरजकुंड मेले ने मुझे आज़ाद कर दिया। अब मैं वापस बोतल में नहीं जाना चाहता!” राजस्थान से आए इस कलाकार ने बताया कि बहरूपिया कला उनकी परंपरा और रोज़गार का हिस्सा है। इस तरह के मेलों में शामिल होने से उन्हें रोज़गार भी मिलता है और अपनी कला को लोगों तक पहुंचाने का अवसर भी। कलाकार ने भारत सरकार और संस्कृति मंत्रालय का आभार प्रकट करते हुए कहा कि ऐसे आयोजनों से लोक कलाकारों को एक मंच मिलता है, जिससे यह विलुप्त होती कला पुनः जीवंत हो रही है।
मेले में आए दर्शकों ने भी बहरूपिया कलाकारों की कला को खूब सराहा। एक दर्शक ने कहा कि आज के डिजिटल दौर में भी इस तरह की कला को देखकर अच्छा लग रहा है। यह वास्तव में एक अद्भुत अनुभव है। वहीं, रोहतक से आए एक परिवार ने बताया कि वे पिछले पांच सालों से सूरजकुंड मेले में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह मेला हर साल और बेहतर होता जा रहा है। यहां हमें हरियाणा के साथ-साथ देश-विदेश की संस्कृति को देखने का मौका मिलता है। हम हर बार यहां से कुछ न कुछ खरीदते हैं और एक यादगार अनुभव लेकर जाते हैं।