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Surajkund Mela 2025: सूरजकुंड मेले में अलादीन का चिराग, जब बोतल से बाहर निकला जिन, लोग रह गए हक्के-बक्के

BY: • LAST UPDATED : February 18, 2025
Inkhabar Haryana, Surajkund Mela 2025: हरियाणा के फरीदाबाद में लगे 38वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले में इस बार एक अनोखा नज़ारा देखने को मिला, जिसने दर्शकों को हैरत में डाल दिया। मेले के बीचों-बीच अचानक ही एक बोतल से 200 साल पुराना जिन बाहर निकला और अपने मशहूर डायलॉग “हुकुम करो मेरे आका!” के साथ सबको चौंका दिया। यह दृश्य देख मेले में आए लोग आश्चर्यचकित रह गए और देखते ही देखते जिन के साथ सेल्फी और फोटो क्लिक करने की होड़ मच गई।

बहरूपिया कला बनी आकर्षण का केंद्र

दरअसल, यह कोई असली जिन नहीं, बल्कि पारंपरिक बहरूपिया कला का शानदार प्रदर्शन था, जिसे कलाकारों ने अनोखे अंदाज में पेश किया। बहरूपिया कला भारत की प्राचीन लोक कलाओं में से एक है, जिसमें कलाकार विभिन्न पात्रों का रूप धारण कर लोगों का मनोरंजन करते हैं। समय के साथ आधुनिक मनोरंजन के साधनों के चलते यह कला धीरे-धीरे विलुप्त होने लगी, लेकिन सूरजकुंड मेले जैसे आयोजन इसे दोबारा जीवंत कर रहे हैं।

मेले में जगह-जगह अलग-अलग वेशभूषा में बहरूपिया कलाकार दर्शकों को हैरान कर रहे हैं। कोई जंगली के रूप में घूम रहा है, तो कोई रीछ बनकर लोगों को डराने का प्रयास कर रहा है। लेकिन अलादीन के जिन का किरदार निभा रहे कलाकार ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया।

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अब जिन बोतल में वापस नहीं जाएगा

अलादीन के जिन का किरदार निभा रहे कलाकार ने हंसी-मजाक के अंदाज में कहा कि मैं दो सौ सालों से इस बोतल में बंद था, लेकिन सूरजकुंड मेले ने मुझे आज़ाद कर दिया। अब मैं वापस बोतल में नहीं जाना चाहता!” राजस्थान से आए इस कलाकार ने बताया कि बहरूपिया कला उनकी परंपरा और रोज़गार का हिस्सा है। इस तरह के मेलों में शामिल होने से उन्हें रोज़गार भी मिलता है और अपनी कला को लोगों तक पहुंचाने का अवसर भी। कलाकार ने भारत सरकार और संस्कृति मंत्रालय का आभार प्रकट करते हुए कहा कि ऐसे आयोजनों से लोक कलाकारों को एक मंच मिलता है, जिससे यह विलुप्त होती कला पुनः जीवंत हो रही है।

दर्शकों को भा रहा है सूरजकुंड मेला

मेले में आए दर्शकों ने भी बहरूपिया कलाकारों की कला को खूब सराहा। एक दर्शक ने कहा कि आज के डिजिटल दौर में भी इस तरह की कला को देखकर अच्छा लग रहा है। यह वास्तव में एक अद्भुत अनुभव है। वहीं, रोहतक से आए एक परिवार ने बताया कि वे पिछले पांच सालों से सूरजकुंड मेले में आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह मेला हर साल और बेहतर होता जा रहा है। यहां हमें हरियाणा के साथ-साथ देश-विदेश की संस्कृति को देखने का मौका मिलता है। हम हर बार यहां से कुछ न कुछ खरीदते हैं और एक यादगार अनुभव लेकर जाते हैं।

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